Monday 21 November 2016

क्या रिस्ते दूध होते है?

कभी ख्वाबों में  भी न सोचा था,ये क्या से क्या हो गया।
क्या कहे वो बदल गये,या फिर हलात बदल गया।
हमारा रिस्ता क्या रेत कि ढेर पर टिका था जो ढह गया।
कितना कमजोर था ये बंधन ,हवा का एक झोका ना सह सका।
अब भी वो हमसे मिलते है,पर लगता है कोई गैर आ गया।
उनकी आँखों का मेरे लिए प्यार कहीं खो गया।
नदी के दो कभी ना मिलने वाले किनारो सा हाल हो गया।
पास है पर दिलों मे सदियो का फासला हो गया।
वे वेवफा निकले या हमसे ही कोई गुनाह हो गया।
तकदीर मे थी जुदाई ,मै तनहा हो गयी।
फट जाता है दूध जब थोडा खटास आ गया।
क्या हमारा रिस्ता भी दूध था,जो कभी ना भरने वाला दरार आ गया।

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