Thursday 16 August 2018

एक यात्रा _गीता ॥

गीता के दूसरे अध्याय का एक श्लोक है ' बारहवे है शायद जिसमे कहा गया है , "ना तो ऐसा है ' मै किसी काल मे नही था , तू नही था अथवा ये राजा लोग नही थे और ना ही ऐसा है की इससे आगे हम सब नही रहेगे ॥ "


काल यानी समय ' समय की परिधि किसे बांधती है , जो समय के अधीन हॊ ' जो समय के साथ जन्म ले और मिट जाए , एक निर्धारित समय मे अपना चक्र पूरा करे ! जैसे वसंत आता है ' नए नए पत्ते -फूल से पूरी धरती शृंगार करती है , फिर एक दिन समय का चक्र पूरा होता है , और पतझड़ आ जाता है , और इतना सुन्दर होने के बाद भी धरती फिर से वीरान हॊ जाती है , एक नए वसंत के इंतजार मे !

यही तो समय का चक्र है ' जो कभी नही रुकता बस चलता ही रहता है ' अनवरत इसे कोई रोक ही नही सकता , बस कुछ है जो समय के अधीन नही ! यानी समय को रोका तो नही जा सकता है , पार इसके पर जाया जा सकता है ! कुछ है जो कालातीत है यानी जो काल यानी समय से भी परे है ' वही है जिसकी अनुभुति हर एक कण मे है !

वो जो काल से परे है , वो हर काल मे रहता है ! काल का कोई बंधन उस पर नही ' जो हर बंधन से परे है ! काल के जो भी आधीन  है ' वो जन्म और मृत्यु के बंधनो मे  जो है , प्रकृति की हर एक चीज़ परिवर्तन शील है , हर एक क्षण मे सब बदल रहा है ' क्योकि परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है ।
पर कुछ ऐसा है जो बदल नही रहा ' जो शाश्वत है ' जिस पर जन्म और मृत्यु का बंधन नही यानी जो समय से पार है , जो अविनाशी है यानी खत्म नही हॊ सकता ! वही इस सारे पल पल के परिवर्तन के बीच एक अटल सत्य है जो बदलता नही ! जिसने उस सत्य को जान लिया , फिर कुछ जानने को शेष कहा बचता है ' फिर जब सागर की एक एक बूंद को स्पर्श कर लिया जान लिया , तो पूरा साग़र जनाने का औचित्य कहा रह जाता है ?

वो जो प्रकाश है ' हमारे भीतर जिस दिन हम उस तक चले गए , फिर सब कुछ प्रकाशवान हॊ जाएगा !

कृष्णा ने कहा है '"ऐसा नही था की मै किसी काल मे नही था ' यानी मुझे पर समय का बंधन नही , मै तो था ' हू , और रहूँगा ! या ऐसा भी नही की तू नही था ,तू भी था , तू भी तो मै ही है , ना ऐसा की राजा लोग नही है , ना ऐसा है की हम आगे नही रहेगे !
जो था सदा से ही ' जो है ' जो सदा ही रहेगा ! वही प्रकाश तो हम सब के अंदर है ! हमारी भूल है हम दूर कही अंधेरो मे भटकते रहते है ' जब की प्रकाश का श्रोत हम खुद ही है , हम कभी खुद तक नही जाते ?
कस्तूरी मृग की तरह हर जगह भटके उस सुगन्ध की तलाश मे , सब छान लिया सिवाय अपने अंदर ! जिसने खुद मे वो खुशबू पा लिया , खुद मे ढूढ़ लिया , वो सारे जगत की खुशबू से एक हॊ गया ! फिर कुछ शेष नही बच जाता ! 

Wednesday 8 August 2018

तेरा होना मुझे पूरा करता है

तुम हो ना हो , तेरा अहसास साथ हो !
जब होठ पर आएगी हसी , वजह तुम होगे !
जब आंखो मे होगा पानी तब भी वजह तुम होगे !
तेरा होना ही मुझे पूरा करता है ॥
कोई उमीद नही मुझे तुमसे , साथ निभाने का !
बल्कि यकीन है तेरे छोड़ के चले जाने का !
तो भी साथ दूंगी तेरा ' साथ देना का वादा है !
मै फुल हू ' खुशबू बिखेरती रहूंगी , तुम हो ना हो ॥
मैने तुम्हे शर्तो मे नही बांधा है तुम मुक्त हो '
मै देखु  चकोर बनकर तुम्हे ' तुम भी देखो मुझे चाँद बनकर ,
ये जरूरी तो नही , ये चकोर का समर्पण है !
मै समर्पित ही रहूंगी , तुम हो ना हो ,
मै समर्पित ही रहूंगी , तुम हो ना हो ! ॥